नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 2025

आज पूरा देश 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र की 128वीं जयंती के अवसर पर उनकी विरासत का सम्मान करने के लिए पराक्रम दिवस-2025  मना रहा रहा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ऐसे राष्ट्रवादी थे, जिनकी जिद और जुनून व ओजस्वी देशभक्ति ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक बना दिया। उन्हें भारतीय सेना को ब्रिटिश भारतीय सेना से एक अलग इकाई के रूप में स्थापित करने का श्रेय भी दिया गया जिसने स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में मदद की थी।

वर्ष 1923 में बोस को अखिल भारतीय युवा कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष और साथ ही बंगाल राज्य कॉन्ग्रेस का सचिव चुना गया। 1925 में क्रांतिकारी आंदोलनों से संबंधित होने के कारण उन्हें माण्डले कारागार में भेज दिया गया जहाँ वह तपेदिक की बीमारी से ग्रसित हो गए। 1930 के दशक के मध्य में बोस ने यूरोप की यात्रा की। उन्होंने पहले शोध किया उसके बाद ‘द इंडियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक का पहला भाग लिखा, जिसमें उन्होंने 1920-1934 के दौरान होने वाले देश के सभी स्वतंत्रता आंदोलनों को कवर किया।

सुभाष चंद्र बोस का जन्म



सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। उसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता में प्रवेश लिया परंतु उनकी उग्र राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। वर्ष 1919 में बोस भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिये लंदन चले गए और वहां भी उनका चयन हो गया। हालांकि बोस ने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया क्योंकि उनका मानना था कि वह अंग्रेज़ों के साथ कार्य नहीं कर सकते।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस महान देशभक्त, क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी

स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का कोई सानी नहीं है। वे एक साहसी और स्वतंत्रता के प्रति अति उत्साहित नेता थे। सुभाष चंद्र बोस श्रीमद्भगवदगीता से गहराई से प्रेरित रहे थे, इसी कारण स्वतंत्रता, समानता, राष्ट्रभक्ति के लिए उनके संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता।

नेता जी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। मातृभूमि को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए उन्होंने अपनी सेना ‘‘आजाद हिंद फौज’’ बनाने का रास्ता चुना। राष्ट्रभक्ति एवं स्वतंत्रता का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना और आजाद हिंद रेडियो की शुरुआत कर सवतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाया। इसमें अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, बंगाली, पश्तो, तमिल, फारसी और तेलुगु में प्रसारित समाचार बुलेटिन व स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित किए गए। इसी तरह, आजादी प्राप्ति की मुहिम को तेज करने के लिए यूरोप में भारतीय सेना का गठन किया गया। उन्होंने अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक नामक राजनीतिक इकाई की स्थापना भी की।

सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है, ने नारा दिया था ‘‘तुम मुझे खून दो-मैं तुम्हें आजादी दूंगा’’ जो आज भी देश के हर नागरिक व युवाओं के दिलों पर अंकित है। यह नारा राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता, कर्तव्य और जिम्मेदारी का अहसास कराता है। इसलिए हमें अपनी स्वतंत्रता को मजबूती देने के लिए अपने प्रयासों में दृढ़ रहना होगा, जो महान बलिदानों और प्रयासों से प्राप्त हुई है।
उनका प्रसिद्ध युद्ध नारा ‘‘दिल्ली चलो’’ उनके दृढ़ संकल्प का एक महान संकेतक नारा था। इसी नारे को ध्येय मानकर आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका विचार था कि हमें अपनी राष्ट्रीय रक्षा को ऐसी मजबूत नीव रखनी चाहिए कि भविष्य में भी हमारी स्वतंत्रता पर कभी भी आंच न आए।
नेताजी, जिनकी जयंती हम हर साल ‘‘पराक्रम दिवस’’ के रूप में मनाते हैं, उन्होंने कहा था ‘‘राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों, सत्यम, शिवम, और सुंदरम से प्रेरित हैं। भारत में राष्ट्रवाद ने उन रचनात्मक शक्तियों को जगाया है जो सदियों से हमारे लोगों में निष्क्रिय पड़ी थीं।

गांधी जी को दिया राष्ट्रपिता का दर्जा

4 जून 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को ‘देश का पिता’ (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया। बाद में भारत सरकार ने भी इस नाम को मान्यता दे दी। गांधी जी के देहांत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि ‘राष्ट्रपिता अब नहीं रहे’।

आजाद हिंद फौज की स्थापना

नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता बने। 1938  और 1939  में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में जापान की मदद से “आजाद हिंद फौज” की स्थापना की। इस फौज का उद्देश्य  ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करना था। इसके तहत “दिल्ली चलो” का नारा दिया गया, जिसने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया।  

सुभाष चंद्र बोस को मिला विदेशी समर्थन

नेताजी ने जर्मनी और जापान जैसे देशों का समर्थन हासिल किया। उन्होंने जर्मनी में भारतीय युद्ध बंदियों से आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की और ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रचार किया।  

रहस्यमय तरीके से गायब होने की कहानी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन आज भी रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन इसे लेकर कई तरह की थ्योरी और विवाद हैं। उनकी मृत्यु की पुष्टि आज तक स्पष्ट रूप से नहीं हो पाई है।