
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हिन्दू नववर्ष का आरंभ चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 30 मार्च, 2025 से हो रहा है. यह विक्रम संवत 2082 होगा. हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि इस तिथि से ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की थी. बैसाखी के त्यौहार को प्रतिवर्ष वैशाख के महीने में मनाया जाता है। वैसे तो साल भर अनेक व्रत, पर्व एवं त्यौहार मनाये जाते हैं। बैसाखी को वैसाखी,वैशाखी या फसल त्यौहार और नए वसंत के के प्रतीक के रूप में अत्यंत उत्साह एवं धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हिंदुओं द्वारा बैसाखी के पर्व को नए साल के रूप में अधिकांश भारत में मनाया जाता है।
बैसाखी का पर्व (हिंदू नव वर्ष) भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो विशेष रूप से पंजाब और उत्तर भारत में बड़े धूमधाम और हर्षोउल्लास से मनाया जाता है। यह त्योहार अपनी संस्कृति, समाज, और कृषि के अनेक पहलुओं का प्रतीक है। बैसाखी का यह त्योहार प्रति वर्ष अप्रैल माह मे मनाया जाता है, इस साल (2025) मे बैसाखी 14 अप्रैल को मनाई जाएगी।
बैसाखी का महत्व

इस महीने में रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और उनकी कटाई भी शुरू हो जाती है। इसीलिए बैसाखी को फसल पकने और सिख धर्म की स्थापना के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। तभी से बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है इस दिन से सिखों के नए साल की शुरुआत होती है।
धार्मिक एकता

धार्मिक महत्व के अनुसार, वैसे तो सूर्य की संक्रांति हर महीने होती है लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख महीने की संक्रांति महत्वपूर्ण बताई गई है। इस माह में दो मौसमों का मेल होता है। शरद ऋतु की विदाई और गर्मी के आगमन का समय होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि को खालसा पंथ की स्थापना की थी।
इस पंथ की स्थापना का उद्देश्य सामाजिक भेदभाव को खत्म करना था। इसके लिए गुरुदेव ने पंज प्यारों को अमृत चखाया और स्वयं भी उनके हाथों अमृतपान किया। इसके बाद ही सिखों के लिए केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण धारण करना जरूरी किया था। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में भी मनाते हैं।
बैसाखी का कृषि महत्व

बैसाखी का प्रमुख संबंध कृषि से है। यह दिन विशेष रूप से किसानों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन गेहूं और अन्य फसलों की कटाई होती है। बैसाखी के दिन लोग अपनी फसलों को काटते हैं और नए मौसम की शुरुआत के रूप में खेतों में पूजा-अर्चना करते है। इसे कृषि उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जहां किसान अपनी मेहनत के परिणाम का आनंद लेते है।
बैसाखी और सिख धर्म

बैसाखी का धार्मिक महत्व भी अत्यधिक है, विशेष रूप से सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बैसाखी 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना के दिन के रूप में याद की जाती है। इस दिन गुरु जी ने सिक्ख समुदाय को एक नई पहचान दी और उनका उद्देश्य था कि वे अपने धर्म की रक्षा करें और समाज में शांति और समानता का प्रचार करें। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस दिन पाँच प्यारों के रूप में पांच सिक्खों को अपने धर्म की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया और एक नया आंदोलन शुरू किया, जिससे सिख धर्म को एक मजबूत पहचान मिली।
बैसाखी का सांस्कृतिक महत्व

बैसाखी सिर्फ कृषि या धार्मिक दिन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक पर्व भी है। खासकर पंजाब में बैसाखी के अवसर पर बड़े मेलों का आयोजन होता है। लोग पारंपरिक नृत्य ‘भांगड़ा’ और ‘गिद्दा’ करते हैं, जो खुशी और उमंग का प्रतीक होते हैं। इस दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं, मिठाई बनाते हैं और परिवार के सदस्यों तथा मित्रों के साथ मिलकर खुशी मनाते हैं।
बैसाखी के दिन लोग एक-दूसरे से मिलकर एकता और भाईचारे का संदेश देते हैं, और यह पर्व हर किसी के दिल में आशा और उत्साह का संचार करता है।
बैसाखी और सामाजिक एकता

बैसाखी का पर्व समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है। इस दिन, विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग एक साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें अपने भेदभावों को छोड़कर, समाज में प्रेम और सद्भाव का संदेश फैलाना चाहिए। इस दिन का महत्व केवल व्यक्तिगत खुशी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एकजुटता का प्रतीक बनता है।
बैसाखी के दिन कुछ प्रमुख गतिविधियां:
कृषि पूजा: किसान अपने खेतों में जाकर फसलों की पूजा करते हैं, ताकि उन्हें अच्छे परिणाम मिलें और वे समृद्धि प्राप्त करें।
धार्मिक आयोजन: खासकर गुरुद्वारों में इस दिन विशेष पूजा और अरदास (प्रार्थना) का आयोजन होता है। लोग गुरुबाणी का पाठ करते हैं और गुरु के आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: बैसाखी के दिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इन कार्यक्रमों में पारंपरिक नृत्य, गीत और संगीत होते हैं, जो वातावरण को और भी खुशनुमा बना देते हैं।
बैसाखी 2025: नई उम्मीदों की शुरुआत

बैसाखी का पर्व एक नई शुरुआत का प्रतीक है। यह दिन यह याद दिलाता है कि कठिनाईयों के बाद अच्छे दिन आते हैं, और हमें हर नई शुरुआत का स्वागत उत्साह और उम्मीद के साथ करना चाहिए। चाहे वह खेती के नए मौसम की शुरुआत हो, या जीवन में किसी नए अध्याय की शुरुआत, बैसाखी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष के बाद सफलता और समृद्धि का मार्ग खुलता है।
बैसाखी का पर्व भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है, जो न केवल कृषि और धर्म से जुड़ा है, बल्कि समाज में भाईचारे और एकता को बढ़ावा देने का काम करता है। बैसाखी 2025 एक ऐसा अवसर है जब हम पुराने दर्द और परेशानियों को पीछे छोड़कर, नए उत्साह के साथ जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। इस बैसाखी, हम सभी को नये आशा, समृद्धि और शांति की कामना करते हैं।
!बैसाखी की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं !