चैत नवरात्रि : देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा/उपासना

चैत नवरात्रि 2025

चैत नवरात्रि हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, हिंदू हर साल दो प्रमुख नवरात्रि मनाते हैं: मार्च-अप्रैल में चैत्र नवरात्रि और सितंबर-अक्टूबर में शारदा नवरात्रि। चैत्र नवरात्रि 2025 मे 30 मार्च से शुरू होकर 7 अप्रैल को समाप्त होगी। यह त्यौहार माँ दुर्गा के नौ रूपों का सम्मान करता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

चैत नवरात्रि का महत्व

शास्त्रों में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है यह त्योहार वसंत ऋतु में आता है और मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित होता है नवरात्रि का अर्थ है – नौ रातें जिसमें मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना होती है कहते है कि इन पावन दिनों मे देवी की उपासना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

चैत नवरात्रि नौ देवी रूपों की पूजा

चैत नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। ये रूप हैं:

1.शैलपुत्री (पहली देवी): शक्ति का प्रतीक, नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होती है,  जिन्हें पर्वत की पुत्री भी कहा जाता है।

2.ब्रह्मचारिणी (दूसरी देवी): नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है, जिन्हें तपस्या और भक्ति की देवी माना जाता है।

3.चंद्रघंटा (तीसरी देवी): नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा की पूजा होती है, जिनके मस्तक पर चंद्रमा का चिह्न होता है।

4.कूष्मांडा (चौथी देवी): नवरात्रि के चौथे दिन कूष्मांडा की पूजा होती है, जिन्हें ब्रह्मांड की रचना देवी भी कहा जाता है।

5.स्कंदमाता (पाँचवी देवी): नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा होती है, जो मातृत्व की देवी हैं।

6.कात्यायनी (छठी देवी): नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी की पूजा होती है, जिन्हें शक्ति का रूप माना जाता है।

7.कालरात्रि (सातवीं देवी): नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा होती है, जो देवी पार्वती के सबसे उग्र रूपों में से एक हैं।

8.महागौरी (आठवीं देवी): नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की पूजा होती है, जो चार भुजाओं वाली देवी हैं।

9.सिद्धिदात्री (नौवीं देवी): नवरात्रि के नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा होती है, जो कमल पर विराजमान दुर्गा का अंतिम रूप हैं।

चैत नवरात्रि पूजा विधि और उपवास

चैत नवरात्रि में विशेष रूप से उपवास का महत्व है। भक्त नौ दिन तक उपवास रखते हैं, जिसमें वे केवल फलाहार (फल, मेवे, दूध आदि) करते हैं और तामसिक भोजन से बचते हैं। यह समय आत्मिक उन्नति और शुद्धता की ओर बढ़ने का होता है।

नवरात्रि के प्रत्येक दिन में देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है, और भक्त आत्मिक और धार्मिक साधना में लीन रहते हैं। इस दौरान घरों में कलश स्थापना भी की जाती है, जो समृद्धि और कल्याण की प्रतीक मानी जाती है।

चैत नवरात्रि का सामाजिक महत्त्व

चैत नवरात्रि धार्मिक उत्सव के साथ-साथ एक सामाजिक उत्सव भी है जिसमे गरबा, दांडिया जैसे नृत्य होते है इस दौरान लोगों के द्वारा इन नृत्यों का आनंद लिया जाता है इससे आपसी सहयोग व भाईचारे की भावना बढ़ती है।

इस समय लोगों के द्वारा दान, सेवा से भी पुण्य कमाया जाता है जिसमे असहायों को भोजन, वस्त्र इत्यादि दिया जाता है जिससे उनकी मदद हो सके और समाज मे एक सेवा भाव का माहौल जागृत हो सके।

चैत नवरात्रि  का विशेष महत्व

चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा तो होती ही है. साथ ही साथ, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हिंदू नववर्ष भी प्रारंभ हो जाता है, जिसे हिंदू नव संवत्सर  चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाने का भी विधान है।

इस पर्व का धार्मिक, आध्यात्मिक, और सामाजिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है इस समय देवी दुर्गा की पूजा आराधना से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है, समस्याओं का समाधान होता है, जीवन मे सकारात्मक परिवर्तन होता है और जीवन को नई ऊर्जा प्राप्त होती है।

चैत नवरात्रि के पर्व मे साधक नौ दिन / नौ रात देवी दुर्गा की आराधना करके शक्ति प्राप्त करते है जिससे साधक को  जीवन मे अनुशासन और शांति मिलती है साधक देवी दुर्गा का आह्वान करके देवी दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करते है।

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