
हर वर्ष जून का महिना एक विशेष संदेश लेकर आता है, प्रकृतिक से जुडने का, धरोहर को सहेजने का, और अपने कर्तव्यों को निभाने का, एक और गंगा दशहरा, जो माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का पावन पर्व है। और दूसरी ओर विश्व पर्यावरण दिवस जो पृथ्वी, जल, वायु वनस्पति और जीव-जंतुओं की रक्षा का संकल्प दिवस है।
इन दोनों दिवसो का संदेश अलग-अलग दिख सकता है, लेकिन वास्तव में इनकी जड़े एक ही है, प्रकृति की पूजा और संरक्षण।
गंगा दशहरा: माँ गंगा का अवतरण

गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। यह वह दिन है जब महर्षि भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। उनका आगमन केवल जलधारा नहीं था बल्कि यह मोक्ष, शुद्धि और जीवन का प्रतीक था।
हिंदू संस्कृति में गंगा सिर्फ नदी नही एक जीवंत देवी है। उनका जल ‘गंगाजल’ कहलाता है, जिसे सबसे पवित्र माना गया है। गंगा का स्पर्श करने मात्र से ही पापो का नाश और आत्मा की शुद्धि मानी जाती है। इसलिए इस दिन लोग गंगा स्नान करते है, दान पुण्य करते है और माँ गंगा से सुख-शांति और मोक्ष की प्रार्थना करते है।
लेकिन आज वही माँ गंगा, जो करोड़ों लोगों की आस्था का आधार है, प्रदूषण और अतिक्रमण की शिकार हो चुकी है।

विश्व पर्यावरण दिवस: प्रकृति की पुकार
हर साल 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) दुनिया को यह याद दिलाने का दिन है कि हमने प्रकृति के साथ जो संबंध बिगाड़ा है, उसे सुधारने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।
प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों का प्रदूषण, वायु और ध्वनि प्रदूषण, ये सब इंसान की गतिविधियों के दुष्परिणाम है। पर्यावरण संकट आज केवल किसी सरकार या संगठन का विषय नही, बल्कि यह हर नागरिक का व्यक्तिगत कर्तव्य बन चुका है।
गंगा और पर्यावरण: एक-दूसरे के पूरक

गंगा और पर्यावरण ये दोनों न केवल एक दूसरे से जुड़े हुए है बल्कि एक दूसरे के बिना अधूरे भी है। यदि गंगा प्रदूषित होती है, तो वह केवल एक धार्मिक स्थल का संकट नही है बल्कि वह स्वास्थ्य, आजीविका, कृषि और जीवन पर भी संकट है।
गंगा बेसिन भारत की लगभग 40% आबादी को पानी उपलब्ध कराता है। इसमे सैकड़ों जीव-जन्तु और वनस्पतियाँ पनपती है। यह नदी केवल धार्मिक दृष्टि से नही, बल्कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जब हम पर्यावरण दिवस पर वृक्ष लगाते है, पानी बचाने की बात करते है, प्रदूषण को रोकने की कोशिश करते है, तब हम अप्रत्यक्ष रूप से गंगा की भी रक्षा कर रहे होते है।

वर्तमान स्थिति: चेतावनी की घंटी
आज गंगा मे हजारों टन सीवेज, औधयोगिक कचरा, प्लास्टिक और धार्मिक कचरा प्रवाहित किया जाता है। गंगा को पवित्र मानने वाले लोग, अनजाने मे उसे प्रदूषित भी कर रहे है, पूजा सामग्री, मूर्तिया, कपड़े और यहां तक की शवों को भी गंगा मे प्रवाहित किया जाता है।
सरकार द्वारा कई परियोजनाएं शुरू की गई है जैसे नमामि गंगे योजना, लेकिन जब तक आम जनता जागरूक नही होगी, तब तक केवल योजनाएं कुछ नही कर पाएंगी।
हमें क्या करना चाहिए? — कुछ छोटे लेकिन असरदार कदम

गंगा और अन्य नदियों मे कचरा न डाले।
पूजा सामग्री को नदी मे बहाने की बजाय, कम्पोस्टिंग पिट मे डाले या संग्रहण केंद्रों मे दे।
जल का अपव्यय न करे एक एक बूंद कीमती है।
प्लास्टिक का उपयोग कम करे। थैले और बोतले नदी तक पहुंचकर प्रदूषण का कारण बनती है।
बच्चों को गंगा और पर्यावरण के महत्त्व के बारे मे समझाएं – शिक्षा ही सबसे बड़ी शक्ति है।
अपने मोहल्ले और ग्राम स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएं।

गंगा की शुचिता = प्रकृति की पवित्रता
गंगा की सफाई केवल एक धार्मिक कार्य नही, बल्कि यह प्राकृतिक पुनरुत्थान का कार्य है, अगर गंगा बचेगी तो धरती की धमनियाँ सुरक्षित रहेंगी, और अगर पर्यावरण बचेगा तो गंगा का प्रवाह भी शुद्ध और संतुलित रहेगा गंगा दशहरा पर माँ गंगा के चरणों मे यही प्रार्थना करे।
“हे माँ गंगे, हम केवल तुम्हारे भक्त नहीं, अब तुम्हारे रक्षक भी बनेंगे। पर्यावरण की रक्षा, तुम्हारी रक्षा है।”
अंत मे

गंगा दशहरा और विश्व पर्यावरण दिवस — एक भारतीय सांस्कृतिक चेतना और दूसरी वैश्विक प्रकृति चेतना — इन दोनों को एक साथ मनाना एक नया दृष्टिकोण देता है।
यह हमें सिखाता है कि धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक समझ साथ चल सकती हैं। हमें ज़रूरत है सिर्फ जागरूकता, एकजुटता और संकल्प की।
गंगा बचेगी, तो संस्कृति बचेगी।
पर्यावरण बचेगा, तो जीवन बचेगा।